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Saturday, March 9, 2024

सैर-सपाटा, परिवार और यादगार लम्हे

 केवल तिवारी

समेट लो इन लम्हों को कि यादों का सजा रहे ताज
घर-परिवार का वक्त बीते बातों में, कल हो या आज
तभी तो कभी बनती है योजना, कभी होतीं बातें पुरानी
सैर-सपाटा, पूजन-अर्चन और सुनी-अनसुनी कहानी
जीवन के इस सफर में कुछ मोड़ यूं आएंगे
चलते, रुकते और थकते, हम गीत अपने गाएंगे।


इन दिनों कुछ लिखता हूं तो शुरुआत दो-चार काव्यात्मक पंक्तियों से हो जाती है। क्योंकि गाना यानी गुनगुनाना और रोना स्वाभाविक मानवीय गुण है और भावुक पलों के दौरान ये गुण सर्वोपरि स्थापित हो जाते हैं। ऐसा ही हुआ पिछले दिनों जब लखनऊ से भाई साहब, नोएडा से भाभीजी, भतीजा, भतीजी, बहू और पोता चंडीगढ़ पहुंचे। जिस दिन से कार्यक्रम बना, छोटे बेटे धवल के सवालों से रू-ब-रू होता रहा। कब आएंगे?, हेमांक क्या बोलने लगा है?, ताऊजी-ताईजी को कहां ले जाओगे? ऐसे ही अनेक बाल सुलभ सवाल। भाई साहब बीसी तिवारी को लखनऊ से सीधे चंडीगढ़ आना था और भतीजे दीपू, उसकी पत्नी जया और बेटे हेमांक को अमरोहा से पहले नोएडा भतीजी कन्नू यानी भावना और भाभीजी यानी राधा तिवारी के पास नोएडा आना था फिर यहां। कार्यक्रम बनने के बाद भी बीच-बीच में किसान आंदोलन के कारण किंतु-परंतु लगते रहे। मन कर रहा था कि ऑफिस से कुछ दिन की छुट्टी ले लूं, लेकिन यहां संभव नहीं था। हालांकि बहुत संकोचवश मैंने अपनी न्यूज एडिटर मीनाक्षी मैडम से शनिवार 2 मार्च की छुट्टी के लिए कहा तो उन्होंने तुरंत हां कही। मैं संकोच इसलिए कर रहा था कि दो दिन बाद ही मंगलवार को मैंने बड़े बेटे कार्तिक के साथ दिल्ली जाना था। शनिवार की छुट्टी मिली तो कार्यक्रम बना लिया। इधर, इंद्रदेव भी अपनी रवानगी में दिख रहे थे। शुक्रवार 2 मार्च की दोपहर बाद भाई साहब पहुंचे, देर रात नोएडा से बाकी सब परिजन। तय हुआ कि कल सुबह पहले रॉक गार्डन फिर सुखना लेक चला जाये। रॉक गार्डन का जिक्र होते ही सवाल उठा कि भाभी जी उतना चल नहीं पाएंगी। बीच-बीच में भावना द्वय (मेरी पत्नी का नाम भी भावना है और भतीजी का भी) इस बात की ताकीद करते कि ये मत बोलो कि भाभीजी चल नहीं पाएंगी, इससे वह घबरा जाएंगी। खैर हुआ भी यही। बारिश की बूंदाबांदी के बीच भाभीजी इस तरह रॉक गार्डन के सफर पर रहीं कि युवाओं को भी मात दे दें। मौसम बिगड़ता देख हम लोग वहीं से वापस आ गए। बाकी जगह जाने का कार्यक्रम मुल्तवी कर दिया। शाम को चंडीगढ़ प्रेस क्लब गए, कुछ बातचीत हुई और लौट आए। रविवार को भतीजी सुबह ही दिल्ली के लिए रवाना हो गयी। हम लोगों ने साईं मंदिर में दर्शन किए फिर जबदरस्त बारिश हो गयी। इस कारण कहीं जाने का कार्यक्रम बन नहीं पाया। सोमवर को भाई साहब लोगों को वाघा बॉर्डर के लिए भेज दिया। सुबह पांच बजे ही उनकी रवानगी हो गयी। बीच में एक बड़ा व्यवधान आया, लेकिन उसका जिक्र नहीं करूंगा। कहते हैं कि नकारात्मक बातों को ज्यादा कहना नहीं चाहिए। बस ईश्वर का सुमिरन करना चाहिए और ईश्वर से हमेशा सकारात्मकता की प्रार्थना करनी चाहिए। यही किया। सब ठीक रहा। मंगलवार रात भाई साहब लोग आ गए। मैं दिल्ली से लौटा करीब 9 बजे। कुछ देर बातचीत हुई, फिर सो गए। बुधवार आराम करने के लिए रखा गया। धूप में बैठकर खूब बातें हुईं। कुछ बचपन की। कुछ ईजा द्वारा बतायी गयीं। कुछ कन्नू-दीपू के बचपन की। इसी दौरान कार्यक्रम बना कि बृहस्पतिवार सुबह मनसा देवी मंदिर, पंचकूला चला जाये। सुबह सभी लोग स्नान कर, बिना कुछ खाये मनसा देवी माता के दर्शन को गए। यहां भी मन में थोड़ी सी चिंता कि क्या भाभी जी चल पाएंगी, फिर हौसला बुलंद था। बहुत सुंदर तरीके से माता के दर्शन हुए, वहीं भंडारा में भोजन हुआ। दोपहर तक हम लोग फ्री हो गए। फिर सुखना लेक सभी को पहुंचाकर मैं एक जरूरी काम से आ गया। उस जरूरी काम का भी यहां जिक्र नहीं कर रहा हूं। शाम को सारा परिवार ताजा-ताजा चंडीगढ़ में शिफ्ट हुए मेरे बच्चों के छोटे मामा के परिवार के यहां गया। वहीं भोजन कर सब लोग रात 11 बजे तक आए। मैं भी ऑफिस से पहुंच गया। कुछ देर गपशप चली और सो गए। शुक्रवार को महाशिवरात्रि थी, इसी दिन भाई साहब को लौटना भी था। हालांकि धवल का आग्रह था कि बर्थ-डे यानी 10 मार्च तक रुक जाएं, लेकिन रिजर्वेशन हो चुका था। भतीजा उसे लेकर सुबह मार्केट गया और उसे ढेर सारे कपड़े दिला लाया। कुछ लोगों का व्रत था, कुछ लोगों ने भोजन किया और भाई साहब, भाभीजी, भतीजा, बहू और बच्चा रवाना हो गये, अमरोहा के लिए। पता ही नहीं चला कि एक हफ्ता कब निकल गया। कई सारे लोकेशन पर जाना अभी रह गया। तय हुआ कि अगली बार पहले से कार्यक्रम बनाकर आगे बढ़ेंगे, हालांकि हम सब कहां कुछ करते हैं, सब भगवान के आशीर्वाद से होता है। इसी माह एक और कार्यक्रम बना है, उसका खुलासा समय आने पर करूंगा। मन को समझाया कि बिछड़ना इसलिए जरूरी है कि फिर मिल सकें। यहां पर यह जिक्र करना जरूरी है कि इस पूरे सप्ताह हेमांक हम सबका हीरो बना रहा। उसकी हंसी, उसका रोना, उसकी अन्य हरकतें हम सबको मोहती रहीं। ईश्वर उसे स्वस्थ रखे। परिवार का यह संक्षिप्त मिलन बेहद यादगार रहा। सफर का यह दौर यूं ही चलता रहे। अंत में इंटरनेट से उठाया मशहूर शायर का एक शेर प्रस्तुत है-
मुझे भी लम्हा-ए-हिजरत ने कर दिया तक़्सीम
निगाह घर की तरफ़ है क़दम सफ़र की तरफ़
साथ ही इस मिलन और सफर कार्यक्रम की कुछ तस्वीरें और वीडियो आपके लिए-















Monday, March 4, 2024

भावुक भावना और रोशन भास्कर

 केवल तिवारी 

ना जाने इन पलों को क्या कहते हैं

मिलने की खुशी और बिछड़ने का गम है

हसरतों की दुनिया और उम्मीदों का जहां है

प्रसन्न होइए कि साथ हो गये, अरे हम बिछड़े कहां है।

भावना को जैकेट दिखाते भास्कर 

बृहस्पतिवार 29 फरवरी, 2024 की शाम उपरोक्त पंक्तियां अपने-आप ही निकल पड़ीं। दिमाग में सुबह का दृश्य चल रहा था। सुबह भास्कर जोशी यानी राजू अपनी बहन भावना को एक-दो जैकेट दे रहा था कि बाजार जाकर उसे रिपेयर करवा लाना। फिर कुछ पैकिंग वैकिंग की बात हुई। उसके बाद राजू आफिस चला गया। मैं और भावना गुनगुनी धूप का आनंद लेते हुए कुछ बातें करने लगे। भावना बोलते बोलते कुछ भावुक सी हो गई, बोली तीन चार दिनों से मन में यही चल रहा है कि राजू के साथ दो-तीन महीने कब निकल गये पता ही नहीं चला। बोलते बोलते उसकी आंखें नम हो गई। स्वभाव से मैं भी भावुक हूं इसलिए भावना को भावना में बहने दिया। असल में भाई-बहन का प्यार होता ही अनूठा है। फिर ये दोनों तो जुड़वां हैं। इसलिए मित्र जैसे भी हैं। भावना राजू की तमाम सकारात्मक बातों को बताने लगी। मैंने भी इस सकारात्मकता को महसूस किया है और बहुत कुछ सीखने की कोशिश की है। मेरा छोटा बेटा धवल यानी राजू का भानजा तो अक्सर यही कहता रहता है कि मामा कुछ ज्ञान की बात हो जाये। फिर गिनाने भी लगता है कि इतनी बातें सीख लीं। वैसे धवल और उसका हमउम्र फैमिली फ्रेंड भव्य जब बातें करते हैं तो भावना और भास्कर को गुस्सैल बताते हैं और मजाक में कहते हैं कि हिरोशिमा में जब बम गिराए गए थे तो उसके दो छर्रे उत्तराखंड के ताड़ीखेत में भी गिर गये थे। असल में इन दोनों का जन्मदिन 6 अगस्त का है। जन्मस्थान उत्तराखंड का ताड़ीखेत।

मामा से ज्ञान प्राप्त करते धवल

राजू जबसे चंडीगढ़ आया तो नया विचार आया कि धवल ने तो राजू की छवि को ही धो दिया है। असल में अक्सर पारिवारिक चर्चा में राजू यानी भास्कर को धीर गंभीर और चुपचाप रहने वाला बताया जाता है। असल में ऐसा बिल्कुल नहीं है। वह बहुत केयरिंग नेचर का है। कभी अपने बेटे भव्य और पत्नी पिंकी के लिए कैब बुक करता तो पूरे रूट पर नजर रखता। फरीदाबाद घर में कुछ मंगाना होता तो यहीं से व्यवस्था कर देता। भावना ने बताया कि रोज शाम घर आते वक्त यह जरूर पूछता कि क्या लाना है। मेरे साथ तो अच्छी मित्रता है और हमारे बीच अपनी सभी बातों की शेयरिंग चलती रहती हैं। मुझे तो अनेक बार राजू जैसा बनने की सलाह भी मिलती है क्योंकि मैं बहुत वाचाल हूं, बेचैन हूं। हालांकि बेचैनी पर काफी हद तक तबसे काबू पा लिया जबसे राजू ने मंत्र दिया था कि कभी भी किसी मुद्दे पर परेशान हो तो 24 घंटे इंतजार करो। भगवान सब ठीक करता है। परिस्थितियां बदलती हैं। ऐसा नहीं कि राजू कोई अलहदा बात बताता है, बस उसका अंदाज ए बयां जानदार होता है। वह पारिवारिक कलह को दुनिया की सबसे बड़ी बेवकूफी बताता है। इस मामले में तो मैं और मेरी पत्नी भावना हमेशा राजू के ससुराल यानी पिंकी के मायके वालों की दाद देते हैं। उनकी रिश्तेदारी में जबरदस्त बांडिंग है। सगा परिवार तो एक है ही, दूर दूर तक के रिश्तों में भी गजब की गर्माहट है। मेरा विचार यही है कि परिवार प्रथम। सबसे पहले अपनों से बनाकर रखिए, इगो को आड़े मत आने दीजिए फिर देखिए सारी दुनिया आपकी होती है। खैर राजू ट्रांसफर होकर बड़े पद पर चंडीगढ़ आ गया है। भावुक भावना को यही समझाया कि मायके से दूरी कम हो गई। बड़े भाई साहब नंदाबल्लभ जी और शेखरदा बड़ी बहन गुड़िया दीदी के करीब काठगोदाम में हैं। भास्कर यहां आ गये। भव्य और धवल का भी साथ हो गया। भावुक क्यों होना। प्रसन्न होओ। इस भावुकता पर एक ब्लाग बन गया। अंत में दो शेर प्रस्तुत कर रहा हूं। महान लेखकों के। ईश्वर सबको स्वस्थ रखे।


बहन की इल्तिजा माँ की मोहब्बत साथ चलती है 

वफ़ा-ए-दोस्ताँ बहर-ए-मशक़्कत साथ चलती है,।


कभी कभी तो छलक पड़ती हैं यूँही आँखें

उदास होने का कोई सबब नहीं होता।


Monday, February 19, 2024

फैशन में मत पड़िये, कोचिंग से पहले बच्चे का रुख भी जानिये

साभार दैनिक ट्रिब्यून online संस्करण

dainiktribuneonline.com

दैनिक ट्रिब्यून online edition में छपा लेख 


केवल तिवारी

पहला मामला : मनोज परेशान है कि तीसरी कक्षा से ही ट्यूशन लगाने के बावजूद उसका बेटा अनंत पढ़ाई में औसत ही क्यों है?

दूसरा मामला : संगीता अपनी बेटी सृष्टि को नौवीं से बड़े कोचिंग सेंटर में भेजना चाहती है ताकि अच्छी पढ़ाई के बाद वह डॉक्टर बनाने का मां-बाप का सपना पूरा कर सके, लेकिन सृष्टि को कोचिंग जाना कतई गवारा नहीं।

दोनों मामलों की कहानी लगभग एक जैसी है। अनंत कोचिंग जा तो रहा है, लेकिन माता-पिता की मर्जी से, इधर सृष्टि पढ़ने में तो ठीक है, लेकिन वह अपने ही अंदाज में पढ़ना चाहती है। जानकार कहते हैं कि सामान्यत: तीन कारणों से लोग अपने बच्चों को बहुत छोटी क्लास से ही ट्यूशन लगा देते हैं। पहला, मां-बाप दोनों नौकरी करते हैं और उनके पास अपने बच्चों को पढ़ा पाने का समय ही नहीं है। दूसरा, अनेक लोगों को लगता है कि बचपन से ही ट्यूशन पढ़ाने से उनका बच्चा आगे चलकर बेहतरीन करेगा या करेगी और सफलता मिलेगी। तीसरा, मां-बाप ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं या फिर आलसी प्रवृत्ति के हैं। या तो उन्हें पढ़ाई-लिखाई की कोई समझ नहीं इसलिए ट्यूशन लगाते हैं कि वहां होमवर्क आदि हो जाए। या फिर आलसी हैं, कौन चक्कर में पड़े, इसलिए ट्यूशन ही भेज दो। इसके साथ ही इन दो मामलों का यह भी एक संदेश है कि लोग फैशन के चक्कर में पड़कर ट्यूशन या कोचिंग में भेजते हैं। 

अगर जानकार या शिक्षाविदों की ही मानें कि बच्चे को उसकी रुचि के अनुसार काम करने दीजिए तो इसमें भी सौ प्रतिशत सत्यता नहीं। रुचि तो यह भी हो सकती है बच्चा पढ़ना ही नहीं चाहता हो। इसलिए सख्ती के साथ पढ़ाई की तरफ उन्मुख करना पड़ेगा। अनुशासन सिखाना पड़ेगा, लेकिन बच्चे को डॉक्टर या इंजीनियर ही बनाना है इसलिए महंगी कोचिंग केंद्रों में भेजा जाए, यह कहना भी उतना ही गलत है। कोचिंग केंद्रों से आएदिन आ रही भयावह खबरों के चलते ही पिछले दिनों सरकार ने नियमावली जारी की थी। सरकारी दिशानिर्देश के मुताबिक कोचिंग संस्थान 16 साल से कम उम्र के बच्चों का दाखिला नहीं कर सकेंगे। न ही अच्छे नंबर या रैंक दिलाने की गारंटी जैसे वादे कर पाएंगे। इस फैसले के पीछे सरकार ने मंशा थी कि गली-मोहल्लों में बिना मानकों के खुल रहे कोचिंग केंद्रों पर रोक लगे। बड़े-बड़े सपने दिखाकर ये कोचिंग सेंटर अभिभावकों का मानसिक और आर्थिक शोषण कर रहे हैं। गला-काट प्रतिस्पर्धा को खत्म करना भी इसकी एक मंशा है। 

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जब जरूरत हो महसूस तो जरूर करें पहल

कोचिंग भेजने या नहीं भेजने को पूर्णत: सही या गलत नहीं ठहराया जा सकता। कुछ बच्चे पढ़ने में बेहतरीन होते हैं, लेकिन उनको सपोर्ट की जरूरत होती है। साथ ही बदले पैटर्न के हिसाब से भी उन्हें कुछ ज्ञान लेना होता है। ऐसे बच्चों को कोचिंग की जरूरत होती है। कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जिनके लिए रुटीन की पढ़ाई ही भारी होती है साथ ही वे इंजीनियरिंग, डॉक्टरी के बजाय दूसरे फील्ड में जाना चाहते हैं, ऐसे बच्चों के साथ जबरदस्ती नहीं की जानी चाहिए। अच्छे कोचिंग इंस्टीट्यूट काउंसिलिंग से लेकर पैरेंट्स टीचर मीटिंग में भी अपडेट देते रहते हैं। 

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बच्चे से फीडबैक लेते रहें

अगर आपने बच्चे को कोचिंग सेंटर में दाखिल करवा ही दिया है तो समय-समय पर उससे फीडबैक लेते रहें। बच्चे के साथ व्यवहार ऐसा रखें कि वह आपसे कुछ छिपाए नहीं। कई बार बच्चों को कोचिंग की पढ़ाई समझ नहीं आती, लेकिन वह दबाव या संकोच में ‘सब ठीक चल रहा है’ का राग अलापता रहता है, जिसके परिणाम खतरनाक हो सकते हैं। इसके साथ ही ध्यान रखें कि बच्चे पर उम्मीदों का पहाड़ मत लादिए। उसे पढ़ने में मदद करें, खानपान का ध्यान दें, सिटिंग अवर्स बढ़ाने के लिए उसे मोटिवेट करें, लेकिन उम्मीदों का पहाड़ न लादें।

Tuesday, February 13, 2024

उत्सव धर्मिता का संदेश देता ऋतुराज का आगमन

 साभार दैनिक ट्रिब्यून online edition

www.dainiktribuneonline.com



केवल तिवारी

उत्सवधर्मिता। प्रसन्नता। पतझड़। ऋतुराज। नव्यता। जीवनचक्र। समय का बदलाव। आशा और निराशा। हमें इंतजार रहता है खुशियों के आने का। खुशियां मन में प्रसन्नता लाती है। प्रसन्नता आने की। प्रसन्नता नवीनता की। यह नवीनता तभी आएगी या ऊर्जावान मन और तन तभी बना रहेगा जब हमारे जीवन में उत्सवधर्मिता बनेगी। यह उत्सवधर्मिता ही हमें प्रसन्न रखेगी। प्रसन्न रहने के लिए मनसा वाचा, कर्मणा शुद्ध रहने को कहा गया। यह शुद्धता भी प्रसन्नता का ही दूसरा रूप है। चारों ओर नजर दौड़ाइये, ऐसा लगेगा मानो आपको प्रसन्न रहने के लिए कहा जा रहा है। लग रहा है कि अगर उदासी है तो परेशान क्यों? खुशियां भी आएंगी। ऋतुराज का आगमन होने वाला है। पहले भी ऐसी ही ऋतु आई, फिर आगमन हो रहा है। कुछ समय बाद भीषण गर्मी आएगी जो बताएगी कि फिर ऋतुराज आएगा। बदलाव ही नव्यता का संदेश है। युग परिवर्तन हुए। मौसम चक्र बदलता है। रात के बाद दिन आता है। आज के बाद कल आता है।

चलिए जरा प्रकृति के संग चलें जो हमें नव्यता का संदेश देते हैं। शहरों में रहने वाले हैं तो इन दिनों आसपास के ग्रामीण इलाकों की ओर कुछ समय के लिए निकल पड़िये। ग्रामीण इलाकों में ही अगर रहते हों तो चारों ओर नजर घुमाइये। दूर-दूर तक दिखेगी हरियाली और पीला सौंदर्य। सरसों के पीले फूल, सूरजमुखी के फूल और कहीं-कहीं गेंदे के फूल। बड़े-बड़े पेड़ों से खत्म होते पत्ते। ये क्या माजरा है। कहीं हरियाली की इतनी रौनक है, कहीं पेड़ों से पत्ते झर रहे हैं। इनके सथ ही पीले फूल किसी शगुन कार्यक्रम की तरह लगते हैं और कहीं-कहीं पेड़ ठूंठ से दिखने लगे हैं। ये पेड़ों से झड़ते पत्ते समझा रहे हैं कि मौसम चक्र बदलने वाला है। यानी मौसम का संधिकाल आने वाला है। पुननिर्माण के लिए तैयार हो जाइये। शरीर पर ध्यान दीजिए। यही ध्यान आने वाले समय के लिए शरीर को स्फूर्तिदायक बनाएगा। नव कोपलों की तरह। पीले सौंदर्य का भी खास महत्व है। दूर-दूर तक दिखने वाला हल्दी रंग आपके मन को स्फूर्तिदायक बनाता है। यह स्फूर्ति, यह उमंग बनी रहेगी, गर कुदरत के इन नजारों को निहारेंगे और इनके संदेशों को समझेंगे। असल में अब ऋतुराज का आगमन होगा। ऋतुराज का मतलब है चारों ओर आनंदित वातावरण। ‘सतरंगी परिधान पहनकर नंदित हुई धरा है, किसके अभिनंदन में आज आंगन हरा-भरा है।’ यह आनंदित वातावरण एक संदेश देता है। भीषण सर्दी के रूप में जीवन के कठिन दौर। इस कठिन दौर के बाद ऊर्जामयी वातावरण। नव पल्लव, नव पुष्प। उसके बाद भी कठिनाई आएगी, एक नये संदेश के लिए। यही तो जीवन चक्र है। हर बार नवीनता। इस नवीनता को बरकरार रखिए। अपने कर्मों में भी और अपने विचारों में भी। 

ठूंठ होते पेड़ भी कुछ कहते हैं

नये मौसम से पहले ठूंठ की मानिंद लगने वाले पेड़ भी तो हमें मानो यही सिखा रहे हैं कि नहीं मरने से पहले जीना सीख लें। सब कुछ न्योछावर कर देते हैं पेड़ दूसरों के लिए। ‘वृक्ष कबहुं नहिं फल भखै, नदी न संचै नीर’ के संदेश की तरह। पत्ते बिखर रहे हैं। ये पत्ते नवसृष्टि का संदेश हैं। पेड़ों पर फिर हरियाली आएगी। पेड़ नयी ताकत के साथ बड़े होंगे। इनका संदेश मानो यही है कि बहार आएगी, लेकिन उसके पहले मुसीबतों से नहीं डरना है।

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पीले फूल, शगुन और सुकून

दूर-दूर तक फैले पीले फूल हम सबको जहां सुकून देते हैं, वहीं इसके फायदे ही फायदे हैं। हरियाली के अलग फायदे हैं। ये हरियाली पशु-पक्षियों से लेकर मानव तक सबके लिए अलग-अलग तरीके से लाभदायक है। पशुओं के लिए चारा है। पंछियों के चुगने के लिए इन खेतों में बहुत कुछ है। घोसलों के लिए तैयार होते पेड़ हैं। मनुष्यों के लिए साग-सब्जी के अलावा अब गेहूं की बालियां भी निकलने वाली हैं। अब बात करें पीले सौंदर्य की। सरसों का साग तो है ही, लेकिन अब इनमें फूल और फल आने शुरू हुए हैं। इसके फूल में कई चमत्कारी गुण हैं। जानकार कहते हैं कि सरसों के फूल न सिर्फ दिखने में खूबसूरत होते हैं बल्कि कई समस्याओं का समाधान भी हैं। इनमें एंटीइफ्लेमेटी, एंटी सेप्टिक और एंटीऑक्सीडेंट गुण मौजूद होते है। साथ ही कई मिनरल्स भी इन पीले रंग से फूलों में पाए जाते हैं। इनसे त्वचा भी निखरती है। फल लगने के बाद सरसों के तेल के गुणों को तो हम सब जानते हैं। तो आइये कुदरत के इन नजारों को निहारें और इन नजारों का आनंद लेते हुए इनके संदेशों को भी समझें।

Friday, February 9, 2024

स्वाति की शादी... सहज और सादगीपूर्ण भव्य आयोजन

 केवल तिवारी 

सात फरवरी की सुबह करीब आठ बजे स्वाति, शुभम, भाभी जी और भाई साहब से विदा लेने लगा तो अपनी सबसे छोटी दीदी के वैवाहिक कार्यक्रम का दृश्य जेहन में घूम गया। वर्ष 1991 में लखनऊ में हुए उस वैवाहिक कार्यक्रम में कन्यादान के समय परंपरा के अनुसार कुछ महिलाएं एक गीत गा रही थीं, जिसके बोल थे, 'वर नारायण बन्नी को अर्पण, अब यह बन्नी तुम्हारी है।' आज स्वाति की शादी में जिस तरह शुभम भागादौड़ी कर रहा था, ठीक उसी तरह मैं भी उस वक्त दौड़-भाग कर रहा था और उक्त गीत सुनकर मेरी रुलाई छूट गई। कुछ महिलाओं की नजर मुझ पर पड़ी तो उन्होंने गाना बंद कर दिया। सुखद संयोग है कि दो माह पूर्व ही उसी दीदी के बड़े बेटे यानी मेरे प्रिय भानजे सौरभ का विवाह हुआ। दो माह पूर्व हुए इस विवाह में बेशक हम लड़के वाले थे, लेकिन देहरादून में सांची (दीदी की बहू) की विदाई के वक्त मैं वहां भी भावुक हो गया था। आज इंदौर में स्वाति बिटिया की शादी में तो हम लड़की वालों के मन में भावनाएं फूटनी ही थीं। मंगलवार, 6 फरवरी की रात जब स्वाति को जयमाल के लिए लाया जा रहा था तो निर्मल भाई साहब ने जिस तरह स्वाति का हाथ पकड़ा था, हम सब भावुक हो गए। सुधा भाभी जी से भी इस बात का जिक्र किया तो उनका गला रुंध गया। भाभी तो अपने नाम के मुताबिक ही हैं। उनके नाम में व जोड़ दें तो .... सचमुच वह पृथ्वीस्वरूपा ही हैं। वसुधा। धीर गंभीर। सबकी चिंता करने वालीं। दैनिक ट्रिब्यून में हमारे सहायक संपादक अरुण नैथानी जी अनेक ऐसे भावुक पलों को देख रहे थे। साथ में अलका भाभी जी और मैं निर्मल जी परिवार से जुड़े अनेक किस्सों को साझा कर रहे थे। बस यही किस्से, यही बातें। निर्मल जी हमारे कोई रिश्तेदार नहीं, लेकिन जीवन सफर में कुछ रिश्ते खून के रिश्तों से इतर अनकहे से, अबूझ से, पता नहीं कैसे होते हैं कि खून के रिश्तों के आसपास ही घूमते हुए से महसूस होते हैं। ऐसा ही है निर्मल परिवार। सच में निर्मल। उनकी सीख से कभी-कभी खीझ भी जाती हो तो क्या? होती रहे, लेकिन क्या करें ऐसे शख्स का जिसके मन में कोई लाग लपेट है ही नहीं। सही को सही और गलत को ग़लत। हो गया होगा जमाना उत्तर आधुनिक। निर्मल जी की संगत का असर और कुछ हम लोगों के संस्कार। सहायक संपादक अरुण नैथानी जी पूरे सफर मेरा खयाल छोटे भाई की तरह रख रहे थे। हमारी बातचीत चली, सवाल-निर्मल जी ने कमाया क्या? जवाब -बच्चे कमाए, मित्र कमाये। बच्चे भी कमाल। निर्मल सुधा संस्कारों से लबालब। तभी तो हम कुछ लोग जैसे ही अमर विलास होटल में मिले तो सब एक साथ बोले, ‘स्वाति ने इंदौर घुमा दिया।‘ जी हां इंदौर। ईश्वर के आशीर्वाद से बेहतरीन घर -वर मिला। स्वाति की शादी इंदौर में होना निश्चित हुआ। चंडीगढ़ से मै, अरुण नैथानी जी, अलका भाभी 6 फरवरी को पहुंचे। शुभम यानी प्रखर श्रीवास्तव ने हमें बताया कि हमने होटल अमर विलास पहुंचना है। वहां विज्ञान जी मिले, लोकमित्र जी मिले और लखनऊ से आए संजय श्रीवास्तव जी मिले। आइए उत्सव सरीखी स्वाति बिटिया के विवाह उत्सव की एक छोटी झलक पर नजर डालें। अरे इतना भावुक भी नहीं होना है। जो गीत संगीत बने थे वे उस दौर के थे, जब किसी की कुशल ही चिट्ठी के मार्फत महीने 15 दिन में मिलती थी। इस उत्सव में ये सब बातें भी हुईं। आइए इस सफर में मेरे हमसफ़र बनिए

स्वाति बिटिया और दामाद अंशुल जी 


अंबाला से जब शुरू हुआ सफर

चंडीगढ़ से इंदौर के लिए कोई सीधी ट्रेन नहीं थी, इसलिए हमने इंदौर जाने के लिए अम्बाला से मालवा एक्सप्रेस में रिजर्वेशन करवा लिया था। जाने का कनफर्म था और आने का वेटिंग टिकट। उम्मीद थी कि कनफर्म हो ही जाएगा। टिकट होने के बाद अनेक लोगों ने मालवा एक्सप्रेस के बारे में कहा कि यह बहुत लेट हो जाती है, कुछ बोले, नहीं अब ऐसा नहीं। खैर जाते वक्त एकदम राइट टाइम यानी शाम 5:00 बजे ट्रेन अंबाला स्टेशन पर पहुंच गयी। भयानक भीड़। रिजर्वेशन वालों को भी ट्रेन में चढ़ने में भारी मशक्कत करनी पड़ी। हम नैथानी जी, भाभीजी और मैंने अपनी सीट ले ली। तभी पता चला कि एक सज्जन तो चढ़ गए, लेकिन उनके चाचा-चाची अंबाला स्टेशन पर ही रह गये। उन सब लोगों को उज्जैन में महाकाल दर्शन के लिए जाना था। आखिरकार वह सज्जन कुरुक्षेत्र में उतर गए और बोले- महाकाल का बुलावा अभी नहीं आया होगा। साथ ही उन्होंने कहा कि कई जरूरी काम छोड़कर उन्होंने यह रिजर्वेशन करवाया था। मुझे उनकी सकारात्मकता अच्छी लगी। सफर को शुरू में ही खत्म करने का अफसोस तो था, लेकिन चाचा-चाची छूट गए तो उसे भी भगवान का हुक्म मानकर वह उतर गए और बहुत छाती नहीं पीटी।

होटल में पत्रकार -साहित्यकार मिलन

इंदौर पहुंचकर हम लोग सीधे अमर विलास होटल गये। शुभम ने बताया कि वहां विज्ञान अंकल हैं। हम लोगों ने कमरे लिए और फिर मैंने विज्ञान जी को फोन किया। इसी दौरान संजय श्रीवास्तव जी मिल गए और उनसे वसुंधरा प्रवास की कुछ पुरानी बातों में व्यस्त हो गया। फिर विज्ञान जी के कमरे में लोकमित्र जी से मुलाकात हुई। हम लोगों ने चाय पी और जितना संभव हो सका अखबारी दुनिया, इलेक्ट्रानिक मीडिया आदि पर चर्चा हुई। कुछ विज्ञान जी की रचनाधर्मिता पर भी।




 थोड़ी सी हंसी ठिठोली

होटल अमर विलास में कुछ देर साथ रहकर मैं, नैथनी जी एवं भाभी जी होटल श्रीमाया पहुंच गए जहां स्वाति के सभी वैवाहिक कार्यक्रम होने थे। निर्मल जी जाहिर है, बहुत व्यस्त थे। फोन भी सुनने हैं। शाम की व्यवस्था का जायजा भी लेना है और हम सबसे बात भी करनी है। अत्यधिक व्यस्त होने के बावजूद वह हमें दूसरे फ्लोर पर लेकर गए और हमारे साथ एक-एक कप कॉफी पी। वहां नैथानी जी ने कुछ पुरानी बातें याद कीं मजाकिया अंदाज में। निर्मल जी ने भी उसी मुस्कुराहट के साथ जवाब दिया। इससे पहले स्वाति और भाभी जी से हम लोग मिले। मैंने भाभीजी से कहा कि आपके चेहरे पर तनाव झलक रहा है। कूल रहिए और आपको भी खूब सजना-संवरना है। स्वाति बोली, अंकल ठीक कह रहे हैं आज मम्मी को मेरी बहन की तरह दिखना चाहिए। कुछ मुस्कुराहट के साथ बातें खत्म हुईं, लेकिन भाभीजी और भाई साहब की व्यस्तता और भावुकता का दिल की गहराइयों से अंदाजा लगाया ही जा सकता था। इसी दौरान नैथानी जी और निर्मल जी में फिर से कुछ पुरानी बातें चलीं। ये लोग तो बहुत पुराने जानकार हैं। स्वाति जब पैदा हुई तब ये लोग मेरठ में थे।



हेमंत पाल जी का अपनापन

वरिष्ठ पत्रकार हेमंत पाल जी की चर्चा अक्सर पहले होती थी। उनको पढ़ा भी। इंदौर जाकर पता चला कि वह तो मेरे पुराने अखबार नईदुनिया में लंबे समय तक पत्रकारिता करते रहे। उनसे और उनके परिवार से मुलाकात हुई। हेमंत जी का बेहद अपनापन मिला जो दिल को भा गया। शादी समारोह में तो उनके साथ अनेक बातें हुईं। अगली सुबह भी वह होटल में मिलने आ गये। उनकी सह सहजता और अपनापन दिन को भा गया। उम्मीद है कि उनसे मुलाकातें होती रहेंगी।

 जीजा जी, मामाजी भाइयों की बातें वातें

शादी का आयोजन है तो जाहिर है अनेक लोग मिले और बातें हुईं। मैंने पहले एक दो लोगों से बात की। स्वाति की मौसी हों या मौसा जी। भाभी जी हों या फिर मामाजी एवं जीजाजी सभी से अलग-अलग तों हुईं। कुछ राजनीतिक विषयों पर भी चर्चा हुई। वारंगल से आए मौसा जी ने बहुत कुछ जानकारी दी। कुछ पल की ही सही, लेकिन बातें-मुलाकातें दीर्घकालिक यादगार बन गयीं।

 सादगी पूर्ण भव्य आयोजन, चौकस निर्मल जी

विवाह का यह कार्यक्रम भव्य, लेकिन सादगीपूर्ण रहा। बेहतरीन सुख-सुविधाओं से लैस होटल में शानदार आयोजन। उतने ही अच्छे सभी लोग। कोई बनावटीपन नहीं। सहज। विवाह कार्यक्रम में कोई डीजे का शोर नहीं, मध्यम आवाज में चलता संगीत। लोग हंसते-मुस्कुराते बातें करते, वैवाहिक कार्यक्रम को देखते। जयमाल के दौरान फोटोग्राफी का छोटा सा सेशन चला। जितना सादगीभरा पूरा आयोजन रहा, उतने ही चौकस निर्मल जी रहे। मन में उनकी कई बातें आ-जा रही होंगी। भावुक क्षण है उनके लिए। इसी के साथ तमाम भावनाओं, व्यवस्तताओं के साथ ही वह बहुत चौकस दिख रहे थे। कहां, क्या चाहिए, इसका पूरा ध्यान। आने-जाने वालों के साथ भी कुछ पल बातचीत। सबसे पूछना कि कुछ खाया या नहीं। फिर ध्यान कुर्सियां ठीक से लगी हैं। उधर, पंडितजी का सारा सामान व्यवस्थित है या नहीं। उनके व्यवस्थित रहने के कई किस्से हमने साझा भी किए।

इंदौर स्टेशन 


 और फिर शुरू हो गई जद्दोजहद अगली मुलाकात तक

विवाह कार्यक्रम के बहुत सुंदर तरीके से संपन्न होने के बाद सात फरवरी को पौने ग्यारह बजे हम लोग इंदौर रेलवे स्टेशन पर पहुंच गए। ट्रेन के इंतजार तक शादी समारोह की ही चर्चा चलती रही। साथ ही ट्रेन के लंबे सफर का भी हमें भान था। इस बार दो कोचों में सीटें मिलीं। मैं दूसरे कोच में बैठ गया। पूरे सफर में खचाखच भरी ट्रेन के बीच नैथानी जी बीच-बीच में हाल-चाल जानने आ जाते। खाने को भी कभी कुछ और कभी कुछ पकड़ा जाते। मेरी सीट के पास ही पांच-छह महिलाएं बैठी थीं, ज्यादातर उम्रदराज। उनमें से एक-दो तो मुझे अपनी मां जैसी लगने लगीं। उन लोगों ने बीच-बीच में भजन, कीर्तन और शबद का ऐसा सिलसिला चलाया कि हर कोई मुग्ध हो गया। इसके साथ ही एक समूह वैष्णोदेवी यात्रा के लिए जा रहा था। चूंकि मालवा एक्सप्रेस कटरा तक चलती है, इसलिए पूरा धार्मकि माहौल था इसमें। कोई उज्जैन में महाकाल के दर्शन करके लौट रहे थे तो कोई वैष्णोदेवी जा रहा था। ये महिलाएं जालंधर से आगे व्यास जा रहे थे। राधास्वामी सत्संग से इनका नाता जुड़ा था। इनसे अनुमति लेकर मैंने एक-दो छोटी-छोटी वीडियो बनाई, जिन्हें यहां साझा कर रहा हूं। हम लोग बेहद सुखद यादों को लेकर चंडीगढ़ लौट आए। अन्य लोगों की कुशल भी व्हाट्सएप के जरिये मिलती रही। स्वाति को ढेर सारी शुभकामनाएं और आशीर्वाद। जय हो।




Wednesday, January 31, 2024

ये मुलाकात एक बहाना है....

केवल तिवारी

जीवन पथ पर कुछ लोगों के बीच उस वक्त की दोस्ती लगभग टिकाऊ सी होती है, जब आप करिअर और पारिवारिक उत्तरदायित्वों की दहलीज पर होते हैं। कुछ किंतु-परंतु के बावजूद इनकी 'मित्रता' बरकरार रहती है। उनमें से कुछ लोग ऐसे दौर में नून-तेल का हिसाब लगाने की स्थिति में आ जाते हैं। कुछ का हिसाब-किताब ही गड़बड़ाया होता है, कुछ पैदाइशी हिसाबी होते हैं, कुछ शादी की तैयारी में जुट जाते हैं। कुछ हरफनमौला टाइप होते हैं, मशहूर लेखक प्रताप नारायण मिश्र के निबंध 'मित्रता' में कही हुई बात के मानिंद। उन्होंने लिखा था कि असली मित्रता तो वही है जब वैचारिक, खानपान आदि विविधताओं के बावजूद बरकरार रहे। इसके बाद कुछ अनबन के बावजूद ऐसी दोस्ती का छोटा सा 'वायरस' जिंदा रहता ही है। स्कूली दोस्तों के बीच तो हाथापाई भी हो जाती है, कुछ समय तक कट्टी फिर सल्ला भी हो जाती है। लेकिन जीवन का यह दौर जिसका मैंने जिक्र किया न तो ज्यादा लड़ने-झगड़ने का होता है और ना ही ज्यादा मनमुटाव पालने का। यह अलग बात है कि 'नासमझ' मित्रों में हमेशा कुछ न कुछ गड़बड़ चलता ही है। जब 'पढ़े-लिखों' का उक्त टाइप का मित्र समाज हो तो एडजस्टमेंट की भी बहुत गुंजाइश होती है। ऐसी ही एक मित्र मंडली है 'हिमगिरि 911' इसके सूत्रधार हैं सुरेंद्र पंडित। संरक्षक हम सब श्री भुवन चंद्र जी को मानते हैं। वह हम सबके जीजाजी हैं। इनका हमें संघर्ष के उस दौर में बहुत सहयोग मिला। मित्र सुरेंद्र के जरिये ही हम आपस में मिल पाए। आज इस ग्रूप का जिक्र इसलिए कि लगभग दो दशक बाद हम सब लोग पिछले दिनों दिल्ली में मिले। चाणक्यपुरी उत्तरांचल सदन में। देहरादून से आए राजेश डोबरियाल ने यहां कमरा बुक किया था। मित्र सुरेंद्र की बदौलत आवभगत अच्छी हो गयी। बॉम्बे से सचिन जादौन उर्फ चश्मा डॉट कॉम उर्फ ठाकुरके पहुंचे और चंडीगढ़ से मैं यानी केवल तिवारी उर्फ बामन के। बाकी सभी मित्र मसलन- धीरज, जैनेंद्र उर्फ जैनी, हरीश, पंकज और वैभव शर्मा उर्फ बंटी गाजियाबाद से। कुछ लोगों का उर्फ जानबूझकर छोड़ दिया है। पहले पहल तो उम्मीद नहीं थी कि सभी पहुंचेंगे। क्योंकि हमारे ग्रूप 'Himgiri 911' में सन्नाटा सा ही पसरा रहता है। मित्र सचिन ने एक दिन करीब डेढ माह पहले मुझे बताया कि जनवरी के अंत में मैं दिल्ली-एनसीआर में हूं, क्या मिलने का प्रोग्राम बन सकता है। अपनी भाषा में उन्होंने कहा, 'करंट लेकर देखो।' मैंने करंट लिया और ग्रूप में मैसेज डाल दिया। तीन-चार मित्रों का रेस्पांस आया। होते-करते उम्मीद बंधने लगी कि हम मिलेंगे ही। देहरादून, मुंबई और चंडीगढ़ से तीन आ ही रहे थे। दो-तीन मित्रों का बेहतरीन रेस्पांस था। जीजाजी भी बातचीत में सहभागी थे। तमाम आशंकाओं के बावजूद इतना बेहतरीन रहा कि हम सभी मित्र मिल पाए। हालांकि सभी में अगर सूची बनाएं तो हिमगिरि के उक्त फ्लैट में दो दर्जन लोग जुड़े होंगे, लेकिन हम 9 लोग तो किसी न किसी तरह जुड़े ही रहते हैं।

इस मिलन के बाद छोटा सा ब्लॉग लिखने के लिए पहले में इंटरनेट पर शेर ओ शायरी ढूंढ़ रहा था ताकि कुछ यहां चिपका दूं, लेकिन फिर मन में आया कि कुछ शायरियां ब्लॉग के अंत में चिपकाऊंगा, पहले ऐवें ही लिखा जाये। क्योंकि जब मिलन समय, तारीख और स्थान तय हो गया तो जाहिर है उसका जिक्र होना ही था। वही जिसका कभी जिक्रभर हो जाए तो पूरा दिन फिक्र में लग जाता था, लेकिन अब सच में उस कुछ के जिक्र से ज्यादा अच्छा लग रहा था मिलजुलकर कुछ गरियाते हुए अंदाज में पुरानी बातों को याद करें क्योंकि कुछ का तो अब सबका अपना-अपना हिसाब हो गया है। मित्र जैनी एक बार कहते थे कि आज हम ब्रांड पूछते हैं कुछ समय बाद पेट सफा की दवाई के बारे में बात करेंगे। खैर मिलन अच्छा रहा। किसी ने कुछ कहा, किसी ने कुछ समझा, किसी को कुछ समझाया गया। डिनर के बाद मैं और राजेश ही वहां रुके, जिनकी वजह से रुकने का इंतजाम किया था, उन्हें जाना पड़ा। फिर कुछ का कुछ तो होगा ही। उम्मीद है अगली बार इस कुछ में से हम कुछ निकाल लेंगे। कुछ सुधर जाएंगे और कुछ सुधार कर लेंगे, बस दुआ है कि ऐसी मीटिंग होती रहें। तो ये थी खाली-पीली की खारिश, खुजली पूरी हुई। सभी मित्रों का धन्यवाद। अब कुछ शेर चिपका रहा हूं। साथ में कुछ फोटो साझा कर रहा हूं। ब्लॉग के शीर्षक पर मत जाना, वह तो बस ऐंवें ही है।


दोस्ती आम है लेकिन ऐ दोस्त, दोस्त मिलता है बड़ी मुश्किल से।


दोस्ती ख़्वाब है और ख़्वाब की ता'बीर भी है, रिश्ता-ए-इश्क़ भी है याद की ज़ंजीर भी है।


मिरी वहशत मिरे सहरा में उन को ढूंढ़ती है, जो थे दो-चार चेहरे जाने पहचाने से पहले 


नोट : चंडीगढ़ आकर मित्र मिलन कार्यक्रम की फोटोज मैंने अनेक लोगों दिखाई तो 99 प्रतिशत लोगों ने आश्चर्य व्यक्त किया कि इतने वर्षों से आप लोगों का साथ है और आप मिलते रहते हैं। मैंने कहा, मिले तो दो दशक बाद हैं, पर साथ तो है। कुल मिलाकर और कुछ हुआ हो या नहीं, आश्चर्यजनक काम तो हुआ ही है।

तो फिर एक बार जय हो...







Thursday, January 18, 2024

बोर्ड परीक्षा : अब सिर्फ रिविजन पर जोर

 

दैनिक ट्रिब्यून में छपा लेख

साभार: दैनिक ट्रिब्यून 

केवल तिवारी 

10वीं और 12वीं बोर्ड परीक्षा अगले महीने यानी फरवरी से शुरू हैं। कुछ जगहों पर प्रैक्टिल की डेटशीट भी आ चुकी है। अनेक बच्चे जहां पहले से ही लक्ष्य साधकर प्रॉपर तैयारी कर रहे हैं, वहीं कुछ अब घबराए हुए हैं। यह समय घबराने का नहीं है। विशेषज्ञ कहते हैं कि इस वक्त सिर्फ रिविजन पर जोर दें। सालभर जो पढ़ा है और पढ़ाई के दौरान टीचर्स ने जो महत्वपूर्ण चैप्टर बताए हैं, उन पर फोकस करें। रिविजन से ही अब लक्ष्य सधेगा। कोई नया चैप्टर अब पढ़कर बात नहीं बनेगी, हां अगर किसी चैप्टर को लेकर टीचर्स ने बताया हो तो उस पर अलग से टाइम निकालकर फोकस करें। फिजिक्स, कैमेस्ट्री और मैथ्स के फार्मूले पर जोर दें। बेहतर होगा अगर आप कुछ विशेष फार्मूलों को लिखकर अपने स्टडी टेबल के सामने चिपका दें। इसके साथ ही बोर्ड पर कोई अच्छा सा कोटेशन यानी सूत्र वाक्य भी लिखकर रखें। अगर इसे प्रतिदिन बदल सकें तो यह आपको नया विश्वास पैदा करने में मददगार साबित होगा। ध्यान रहे कि जितना अधिक रिविजन होगा, परीक्षा हाल में आप उतने ही सहज रहेंगे। इसके साथ ही प्रतिदिन अलग-अलग विषय को लेकर कुछ लिखते रहें। साथ ही ध्यान दें कि आपकी हैंड राइटिंग में भी सुधार हो रहा हो। क्योंकि परीक्षाओं में लिखावट का भी बहुत महत्व होता है। लिखावट फर्स्ट इंप्रेशन की ही तरह है। तो बोर्ड की परीक्षा देने को तैयार बच्चे बिना घबराहट के साथ अपने आत्मविश्वास को बरकरार रखते हुए रिविजन पर लगातार फोकस करें।  

 प्रतिदिन दो विषय के सैंपल पेपर हल करें 

बेशक अब बोर्ड परीक्षाओं का पैटर्न बदल रहा है, फिर भी पिछले पांच-छह साल के सैंपल पेपर निकालकर प्रतिदिन दो विषयों के पेपर को सॉल्व करने की कोशिश करें। इसके अलावा रुटीन पढ़ाई भी जरूरी है। सैंपल पेपर इस तरह से सॉल्व करें कि मानो आप परीक्षा भवन में ही बैठे हैं। इसमें आप अपने घर के किसी बड़े की मदद ले सकते हैं। मदद से आशय है कि सॉल्व पेपर को उनसे चेक करवाएं। फिर मार्किंग भी करवाएं। ऐसा ऑनलाइन पेपर निकालकर उसकी आन्सर शीट घर के किसी बड़े सदस्य को देकर कर सकते हैं। धीरे-धीरे आपका अभ्यास बढ़ेगा और परीक्षा हॉल में आप सहजता से पेपर दे सकेंगे।  

 यदि चल रही हो दोहरी तैयारी 

12वीं का पेपर देने जा रहे अनेक बच्चे दोहरी तैयारी कर रहे हैं। दोहरी तैयारी से मतलब कुछ लोग इंजीनियरिंग की परीक्षा देने वाले हैं और कुछ मेडिकल की। ऐसे बच्चों के लिए समय थोड़ा ज्यादा परिश्रम का है, लेकिन मुश्किलभरा दौर नहीं। आपको दोनों चीजों के हिसाब से समय का बंटवारा करना होगा। जेईई या नीट के सैंपल पेपर के साथ-साथ इन बच्चों को बोर्ड की भी तैयारी करनी होती है, इसलिए पढ़ाई के कुछ घंटे तो बढ़ाने ही पड़ेंगे। लेकिन यह तैयारी बिना घबराहट के ही होनी चाहिए।  

बदले पैटर्न पर ध्यान दें 

अपनी तैयारी को जारी रखते हुए आप बदले पैटर्न पर ध्यान जरूर दें। क्योंकि यदि आपकी तैयारी पुराने पैटर्न पर होगी और परीक्षा हॉल में अचानक आपको पैटर्न बदला दिखेगा तो पहलेपहल दिक्कत होगी। इसलिए पेपर्स में क्या बदलाव होने वाला है। ऑब्जेक्टिव एवं सब्जेक्टिव कितने प्रश्न आने हैं, इसका अंदाजा पहले से होना जरूरी है। इसके अलावा साहित्य जैसे कि हिंदी, अंग्रेजी, पंजाबी या संस्कृत में कुछ अपठित गद्यांश या पद्यांश के तरीकों पर भी ध्यान दें। इनके जवाब देते वक्त संबंधित पद्यांश या गद्यांश को अच्छे से पढ़ लें।  

 

टीचर्स के संपर्क में जरूर रहें 

कुछ स्कूलों में बोर्ड परीक्षार्थियों की अब छुट्टी शुरू हो जाएगी। संभवत: कुछ स्कूलों में हो भी गयी हो, लेकिन टीचर्स बच्चों से संपर्क बनाए रखने को कहते हैं। आजकल तो ऑनलाइन इतने सारे प्लेटफॉर्म हैं, इसलिए टीचर्स के टच में रहना जरूरी है। इसी संदर्भ में यह बात भी जरूरी है कि सोशल मीडिया को कुछ महीनों के लिए बाय-बाय कर दीजिए। बस मतलब भर के लिए इनका इस्तेमाल करें। हो सके तो पैरेंट्स के ही फोन का इस्तेमाल करें, अपने पास स्मार्ट फोन न रखें।  

 

फल जरूर खाएं, मेडिटेशन भी करें 

इस आपाधापी के बीच एक बहुत महत्वपूर्ण बात कि मेडिटेशन जरूर करें। सुबह शाम कम से कम आधा घंटा लंबी सांसें खींचना एवं अनुलोम विलोम करें। यदि अपने-अपने धर्म के हिसाब से पूजा-अर्चना करते हों तो उस दौरान भी यह काम किया जा सकता है। इसके साथ ही ध्यान रहे कि फल जरूर खाने हैं। वैसे तो हर पैरेंट्स बच्चों का ध्यान रखते हैं, लेकिन कई घरों में माता-पिता दोनों नौकरीपेशा होते हैं, ऐसे बच्चे फलों की डिमांड कर घर में साफ कर उन्हें रख लें और पढ़ाई के दौरान ही उनका सेवन कर सकते हैं। ऐसे में भोजन हल्का रहेगा और आलस्य नहीं घेरेगा। 

Sunday, January 14, 2024

मकर संक्रांति : प्रकृति से सीखने और पर्यावरण को संवारने का पर्व

 केवल तिवारी 

मकर संक्रांति। एक विशेष त्योहार। प्रकृति से सीखने का और पर्यावरण को सहेजने का पर्व। भारतीय संस्कृति की मान्यताओं का सार है 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' अर्थात अंधकार से प्रकाश यानी रोशनी की तरफ बढ़ें। मकर संक्रांति इसी मान्यता का अहम पड़ाव है। सूर्य उत्तरायण की ओर। प्रकृति, एक नया संदेश देने के लिए तैयार है। नयेपन का संदेश। बिना नवीनता के सुख कहां। सृष्टि में एक नवीनता आने लगती है। नवीनता ही सृष्टि का नियम है। यह समय किसी क्षेत्र विशेष के लिए नहीं, वरन संपूर्ण भारत वर्ष यहां तक कि विश्व के अनेक देशों के लिए विशेष होता है। पंजाब में लोहड़ी की धूम, उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार में खिचड़ी का पर्व।

हरिद्वार में स्नान करते श्रद्धालु। फोटो: साभार इंटरनेट 


 तमिलनाडु में पोंगल, कर्नाटक और आंधप्रदेश में मकर संक्रमामा। उत्तराखंड, गुजरात, राजस्थान आदि में उत्तरायण या उत्तरायणी। केरल में 40 दिनों का बड़ा त्योहार शुरू, ओडिशा में भूया माघ मेला, हरियाणा और हिमाचल में मगही। इसी तरह असम में माघ बिहू, कश्मीर में शिशुर सेंक्रांत। इन सबके साथ ही नेपाल में माघे संक्रांति, थाईलैंड में सोंगक्रण, म्यांमार में थिन्ज्ञान, कंबोडिया में मोहा संगक्रण, श्रीलंका में उलावर थिरुनाल आदि। इसके अलावा भी कई देशों और हमारे देश के अन्य हिस्सों में भी यह पर्व अलग-अलग रूप में मनाया जाता है।  

पौराणिक, धार्मिक मान्यताओं के साथ ही मकर संक्रांति का वैज्ञानिक आधार भी है। उड़द की खिचड़ी खाने का रिवाज हो या फिर मीठे पकवान बनाने का। लड्डू बनाने की परंपरा हो या फिर नदियों में स्नान फिर ध्यान लगाने का और उसके बाद दान का। सूर्य उत्तरायण होने के इस मौसम में ही हमारे शरीर में भी कुछ परिवर्तन होते हैं। मौसम के हिसाब से इन्हें नियंत्रित करने के लिए खान-पान का अलग महत्व है।  

हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार इस विशेष दिन पर भगवान् सूर्य अपने पुत्र भगवान् शनि के पास जाते है, उस समय भगवान् शनि मकर राशि का प्रतिनिधित्व कर रहे होते हैं। पिता और पुत्र के बीच स्वस्थ सम्बन्धों को मनाने का भी यह प्रतीक है। संबंध स्वस्थ तो मन स्वस्थ और मन से ही तन के क्रियाकलाप भी नियंत्रित होते हैं। एक सकारात्मक संदेश। यह सकारात्मकता खुशी और समृद्धि का प्रतीक है। इसके अलावा इस विशेष दिन की एक कथा और है, जो भीष्म पितामह के जीवन से जुड़ी है, जिन्हें यह वरदान मिला था, कि उन्हें अपनी इच्छा से मृत्यु प्राप्त होगी। जब वह बाणों की शैया पर लेटे हुए थे, तब वह उत्तरायण के दिन की प्रतीक्षा कर रहे थे और उन्होंने इस दिन अपनी आंखें बंद कीं और इस तरह उन्हें इस विशेष दिन पर मोक्ष की प्राप्ति हुई।  

समृद्धि का एक और प्रसंग इस त्योहार से जुड़ा है। इसी दौरान फसल पकने की शुरुआत होती है। सूर्य रोशनी, ऊर्जा, ताकत और ज्ञान का प्रतीक है। चैतन्यता का प्रतीक है। ‘उठ जाग मुसाफिर भोर भई’ का प्रतीक है। ‘अब रैन कहां जो सोअत है’ का प्रतीक है। बहुत हुआ सोना, अब उठना है। सोने से मतलब है कि धुंध का माहौल। उठना यानी यह धुंध अब छंटेगा। खुशहाली आएगी। आप अपने चारों ओर नजर दौड़ाइये- कहीं सरसों खिलने लगी है, गेहूं में बालियां आने लगी हैं। गन्ने के खेत लहलहाने लगे हैं। ऐसे ही अवसर के लिए तो शायद एक कवि ने सटीक लिखा है, 'सतरंगी परिधान पहनकर नंदित हुई धरा है, किसके अभिनंद में आज आंगन हरा भरा है।' मकर संक्रांति स्नान, ध्यान के साथ ही दान का भी पर्व है यानी चैरिटी का। यथाशक्ति जरूरतमंदों को दान दें। प्रकृति का संदेश भी तो यही है। हवा, पानी, पेड़-पौधे देने वाली प्रकृति यही तो कहती है कि दान दीजिए, मेरी तरह यानी प्रकृति की तरह। प्रकृति को संवारने का भी यह पर्व है। कुदरत के इस अनूठे पर्व को समझिये, इसके मर्म को समझिये और प्रकृति को संवारिये, निहारिये, सीखिये। यही है मकर संक्रांति।  


Thursday, January 4, 2024

परिवार, संस्कार की बात और फिर बातों से निकली बात

 

सफर के राही, राहों के सफर

केवल तिवारी

कभी-कभी आपस में बात कर लेने से भी बहुत कुछ हासिल हो जाता है। यह भी तो कहा ही जाता है कि बात ही किसी समस्या का समाधान है। हमें किसी से शिकायत है, हो सकता है उसे इसका भान ही न हो। या मुझसे किसी को कोई दिक्कत है, लेकिन मुझे पता ही न हो। या फिर यह भी तो कि संस्कार, परिवार मामले में हम क्या थे, क्या हो गए और क्या होंगे अभी। जो हुए, वह क्यों? क्या सुधार की गुंजाइश बची है, यदि हां तो कितनी। या समय के बहाव के साथ बहते हुए कुछ चीजों को बचाकर रखना होगा। बोलेंगे, सुनेंगे तो सब होगा। ऐसी ही एक सार्थक बातचीत पिछले दिनों हुई। एक अनौपचारिक था और दूसरा औपचारिक। एक रात की बातचीत थी और दूसरी दिन की। रात था नये साल के स्वागत का और दिन था फिल्म संबंधी एक राष्ट्रीय स्तर के किसी कार्यक्रम के सिलसिले में। रात वाली तो ज्यादातर बातें रात गयी, बात गयी में तब्दील हुई, लेकिन मेरे लिए यह बातचीत भी सार्थक रही क्योंकि पुराने मोहल्ले के अनेक लोग मिले। ऑफिस के भी कई ऐसे लोग मिले जिनके चेहरे पहचानता हूं, नाम नहीं। कुछ जानकारियां मिलीं। किसी को किसी कारण सांत्वना दी और कुछ योजनाओं का पता चला। कुछ अपनी राय दी, कुछ दूसरों की सुनी। मोगा से ब्रदर इन लॉ सतीश जोशी उर्फ सोनू सपरिवार पहुंचे थे, उनके साथ गुफ्तगू हुई। चूंकि नये साल के स्वागत की बात थी इसलिए ऑफिस से काम निपटाकर जाना संभव हो पाया। दूसरा मसला था दिन का। दो दिन बाद। वहां लघु फिल्मों के कार्यक्रम को लेकर कुछ बातें हुईं। इस मुख्य मुद्दे से पहले कुछ लोगों ने और बातें भी की।
शादी-व्याह, परिवार और संस्कार
औपचारिक बैठक से पहले घर, परिवार और संस्कार की बातें हुईं। कुछ लोगों ने माना कि ज्यादातर मामलों में हम अभिभावक ही जिम्मेदार होते हैं। जैसे कि कहीं कार्यक्रम में जाना हो तो बच्चों के मना करने पर हम मान जाते हैं। कायदे से उन्हें ले जाना चाहिए। इसी तरह पहले परिवार के लोग शादी-व्याह में काम में हाथ बंटाते थे, लेकिन अब तो पर्यटन जैसा मामला हो गया। हर कपल को एक निजता चाहिए। हर दो-तीन घंटे में नये कपड़े चाहिए। संस्कारों में भी बाजार हावी हो गया। हालांकि यह भी माना गया कि स्थिति बहुत ज्यादा निराशाजनक भी नहीं है।
विज्ञापन और उनका संदेश
बातों, बातों में कुछ विज्ञापनों का जिक्र हुआ। साथ ही इस बात की जरूरत भी समझी गयी कि संयुक्त परिवारों या इसी तरह के कुछ अन्य मसलों पर विपरीत प्रभाव डालने वाले विज्ञापनों के खिलाफ आवाज उठनी चाहिए। कुछ आवाजें उठीं तो ऐसे विज्ञापन बंद भी हुए। मैं एक बात कहते-कहते रुक गया था कि कुछ विज्ञापन तो बहुत अच्छे भी आते हैं जिन्हें देखने में आनंद आता है। ऐसे ही एक विज्ञापन में दो दोस्त कार में जा रहे होते हैं, पीछे एक दूसरी कार वाला गलत तरीके से ओवरटेक करते हुए निकलता है। उस कार में बैठा एक शख्स कार चला रहे अपने दोस्त से कहता है कि अरे हमारी गाड़ी उससे बड़ी और अच्छी है, पीछा कर। दोस्त समझाता है भाई हमारी गाड़ी ही बड़ी नहीं है, हम भी बड़े हैं, हमारी सोच भी बड़ी है। जाने दो उसे, सफर का आनंद लो। ऐसे ही एक विज्ञापन में मां का विश्वास दिखता है कि उसके बच्चे झूठ बोल ही नहीं सकते। मैंने अनेक लोगों से बाद में कहा कि गलत मैसेज दे रहे विज्ञापनों के खिलाफ आवाज उठनी चाहिए। आजकल तो बस एक मेल करना है या फिर अन्य माध्यमों से संदेश भेजना होता है।
कार्यक्रम, मीडिया, रिपोर्टिंग और डेस्क
बातचीत के दौरान ही मीडिया कवरेज की बात उठी। सवाल यह भी कि किसे बुलाया जाये। फिर तय हुआ कि कार्यक्रम की कवरेज के लिए बीट रिपोर्टर को बुलाना चाहिए। संपादक मंडल को अलग से न्योता जाये और संभव हो तो डेस्क के अन्य वरिष्ठ साथियों को भी बुलावा भेजा जाये। इसमें कुछ किंतु-परंतु भी उठे, लेकिन कुछ लोगों ने कहा कि रुटीन कवर करने वाले से कई बार अचानक कवरेज के लिए भेजा व्यक्ति अच्छा कर सकता है। फिर उन लोगों की शिकायतें भी दूर होती हैं कि उन्हें नहीं बुलाया गया। खैर ये तो संस्थागत, व्यवस्थागत मसले हैं। सिर्फ कवरेज ही जरूरी नहीं, प्रबुद्धजनों को रायशुमारी के लिए भी बुलाया जा सकता है। रायशुमारी की बात पर ही लोगों की कला को परखने का भी मसला उठा। कुछ उदाहरण भी दिए गए कि सोच को ठीक रखनी होगी। पत्रकारिता में आ रहे बच्चों में जानकारी के स्तर पर भी कुछ समस्याएं हैं। फिर पेंटिंग्स और पेंटिंग से जुड़े नामचीन लोगों की 'छोटी सोच' पर भी अफसोस जताया गया।
कश्मीर, खानपान वगैरह... वगैरह
कश्मीर में बदलावों पर भी जिक्र हुआ। यहां अनुभवी से इतर उत्साही युवाओं को ले जाने के किसी कार्यक्रम पर भी बात बनी। माना गया कि वहां जाकर स्थिति का आकलन किया जाये। साथ ही यह भी कि कई लोग खानपान को धर्म से जोड़ देते हैं जो ठीक नहीं। शाकाहार या मांसाहार तो परिस्थितियों पर निर्भर था। यह अलग बात है कि देखादेखी बाद में बहुत कुछ बदल गया। बातें कुछ और भी हुईं जिन पर कहानी बन सकती है, कविताएं लिखी जा सकती हैं। विचार मंथन हो सकता है। कहानी कविताओं से ही याद आया कि इस बातचीत के दौरान बुजुर्गों द्वारा बच्चों को कहानी सुनाने के सिलसिले के खत्म सा होने पर अफसोस भी जताया गया। कुछ हंसी-मजाक भी हुई और पागल और बेवकूफ का कहानीनुमा फर्क भी समझने को मिला। जैसा कि सभी ने माना कि ऐसा मेलजोल होते रहने चाहिए। लोग भले कम हों, लेकिन बातों को समझकर समझाने वाले हों। जये हो।

नया साल : उम्मीदें अपार, चुनौतियों की भरमार

साभार : दैनिक ट्रिब्यून

केवल तिवारी

नवीनता! उम्मीदें! चुनौतियां! संभावनाएं! आशंकाएं! यादें! सबक! राहें! मंजिलें! सफर! ब्रह्मांड के नियमानुसार बदलाव अवश्यंभावी। बदलाव हर दृष्टि से। कुछ स्वाभाविक और कुछ सप्रयास। बदलाव की बात है तो सबसे पहले नये साल की। 21वीं सदी का 24वां साल शुरू हो चुका है। यह साल पूरे विश्व में बड़े बदलावों का है। राजनीतिक। सामाजिक। आर्थिक। सर्जनात्मक, और भी बहुत कुछ। उसी तरह से जैसे कि कहा ही गया है, ‘बिना नवीनता के सुख कहां।’ यानी नवीनता है तो कुछ बदला-बदला सा है। कुदरती बदलाव क्या होंगे, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन कुछ अच्छे होने की उम्मीदें तो बनी हैं और बनी रहनी चाहिए। बंपर फसल होने की उम्मीद है। कार्बन उत्सर्जन घटने की उम्मीद है। चांद-सितारों को छूने की उम्मीद है। महामारी से पार पाने की उम्मीद है। ‘वैश्विक उथल-पुथल’ कम होने की उम्मीद है। उम्मीद हैं तो चुनौतियों से भी नजरें कैसे फेरी जा सकती हैं। चुनौतियां भी अपार हैं। साइबर अपराध तेजी से बढ़ रहा है। आशंका है कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस कहीं ‘भस्मासुर’ न बन जाए। समय पर नहीं चेते तो रूस-यूक्रेन और इस्राइल-हमास जैसी स्थितियां कहीं और भी न बन जायें। खैर आशंकाओं के पनपने को ज्यादा तवज्जो क्यों देना, चलिए चर्चा इस पर करते हैं कि क्या होगा इसा साल और कैसी होंगी चुनौतियां।
78 देशों में चुनावी बयार
वर्ष 2024 को वैश्विक दृष्टिकोण से चुनावी साल कहना गलत न होगा। एक अनुमान के मुताबिक 78 देशों में किसी न किसी रूप में व्यापक स्तर पर चुनाव होंगे। बेशक, कुछ देशों में ये चुनाव महज औपचारिक रहेंगे, लेकिन ज्यादातर में लोग अपने प्रतिनिधियों को चुनकर नयी सरकार का गठन करेंगे। जानकार तो कहते हैं कि इतने व्यापक स्तर पर चुनाव अब अगले 24 साल तक देखने को नहीं मिलेंगे। सबसे पहले तो भारत में ही आम चुनाव इसी साल प्रस्तावित हैं जो अप्रैल-मई के बीच होने की संभावना है। इसके बाद ब्राजील और तुर्किए जैसे कुछ स्थानों पर आम चुनाव नहीं होंगे, लेकिन निकाय चुनावों में पूरा देश भाग लेगा। जी20 देशों में भी ज्यादातर में इसी साल चुनाव हैं। साल की शुरुआत में ही भारत के पड़ोसी देशों बांग्लादेश और पाकिस्तान में चुनाव होने वाले हैं। बांग्लादेश में जनवरी और पाकिस्तान में फरवरी में ये चुनाव होने हैं। जाहिर तौर पर वहां के परिणामों का भारत पर भी असर पड़ेगा। उसके बाद भारत में चुनाव होंगे। यहां के परिणामों का असर भी पड़ोसी देशों के रिश्तों पर पड़ना स्वाभाविक है। फरवरी में ही इंडोनेशिया में चुनाव होने हैं। मई में दक्षिण अफ़्रीका में चुनाव होने हैं। यहां 1994 में रंगभेद की समाप्ति के बाद से इन चुनावों को सबसे महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इसके अलावा अल्जीरिया, बोत्सवाना, चाड, कोमोरोस, घाना, मॉरिटानिया, मॉरीशस, मोज़ाम्बिक, नामीबिया, रवांडा, सेनेगल, सोमालीलैंड, दक्षिण सूडान, ट्यूनीशिया और टोगो में भी चुनाव प्रस्तावित हैं। यूरोप के लिए भी यह साल चुनावी साल ही साबित होगा। फ़िनलैंड, बेलारूस, पुर्तगाल, यूक्रेन, स्लोवाकिया, लिथुआनिया, आइसलैंड, बेल्जियम, यूरोपीय संसद, क्रोएशिया, ऑस्ट्रिया, जॉर्जिया, मोल्दोवा और रोमानिया में भी लोग नयी सरकारों को चुनेंगे। सबसे बड़ी महाशक्ति के रूप में जाने जाने वाले अमेरिका में भी इसी साल चुनाव होने हैं। अमेरिका में साल के अंत तक चुनाव हो जाएंगे। 
भारत का शीर्ष न्यायालय करेगा कई बड़े फैसले
सर्दियों की छुट्टी खत्म होते ही भारत का सुप्रीम कोर्ट कई अहम मु्द्दों पर फैसला सुनाएगा। इनमें प्रमुख हैं इलेक्टोरल बॉण्ड, धन शोधन यानी मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत गिरफ्तारी, संपत्ति जब्ती, कुर्की के साथ-साथ सर्च करने का अधिकार, दिल्ली में सेवा अधिकार मामला, मुफ्त चुनावी वादे, अविवाहित महिला को सरोगेसी आदि। इसके अलावा कई अन्य मुद्दे भी सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन हैं जिनमें से कई स्वत: संज्ञान वाले हैं तो कुछ पर याचिकाएं डाली गयी हैं। 
नौ लंबे वीकेंड
घूमने-फिरने के शौकीनों के लिए इस बार नौ लंबे वीकएंड पड़ रहे हैं। यानी एक या दो दिन की छुट्टी लेकर वे निकल सकते हैं चार-पांच दिन घूमने के लिए। ऐसे ही कोई पारिवारिक कार्यक्रम भी इन छुट्टियों के हिसाब से तय कर सकता है। सोमवार से शुरू हो रहे नये साल में अनेक छुट्टियां शनिवार और इतवार के आगे या पीछे पड़ रही हैं। जैसे, लोहड़ी शनिवार को है तो सोमवार को मकर संक्रांति एवं पौंगल। गणतंत्र दिवस इस बार शुक्रवार को पड़ रहा है यानी आगे दो दिनों की छुट्टी। शिवरात्रि शुक्रवार 8 मार्च को है, होली सोमवार 25 मार्च को है, गुड फ्राईडे 29 मार्च को है, बुद्ध पूर्णिमा बृहस्पतिवार 23 मई को है, बकरीद सोमवार, 17 जून को है, स्वतंत्रता दिवस इस बार बृहस्पतिवार को पड़ेगा। जन्माष्टमी सोमवार 26 अगस्त को है, ईद उल मिलाद उन नबी सोमवार 16 सितंबर को है, राम नवमी शुक्रवार 11 अक्तूबर को है। दिवाली शुक्रवार 1 नवंबर को है। गुरु नानक जयंती शुक्रवार 15 नवंबर को है। इस तरह त्योहारों और अपनी छुट्टियों के हिसाब से लोग अपना छुट्टी कैलेंडर तैयार कर सकते हैं। 
शुभ मुहूर्त की 77 तिथियां
यूं तो हर दिन शुभ है, बस निर्भर करता है किसी के भाव और स्वभाव पर। फिर भी कुछ मांगलिक कार्य सनातन धर्मी शुभ मुहूर्त निकालकर करते हैं। गृह प्रवेश, जनेऊ, विवाह आदि जैसे कई शुभकार्य ज्योतिषीय गणना के हिसाब से मुहूर्त निकालकर किए जाते हैं। वैसे कुछ दिनों जैसे कि वसंत पंचमी, रक्षा बंधन आदि दिवसों पर लोग बिना मुहूर्त निकलवाए शुभ कार्य करते हैं। वैसे जानकारों के मुताबिक इस साल जनवरी में 10 दिन, फरवरी में 20 दिन, मार्च में 9 दिन, अप्रैल में 5 दिन, जुलाई में 8 दिन फिर अक्तूबर में 6 दिन, नवंबर में 9 दिन, दिसंबर में 10 दिन मांगलिक कार्य हो सकते हैं। 
खेलकूद के लिए भी खास है यह साल
खेलकूद की दृष्टि से भी यह साल बेहद खास है। पेरिस में ओलंपिक इसी साल जुलाई-अगस्त में होने हैं, इसके अलावा अनेक गेम्स के लिए यह वर्ष खास रहेगा। आइये जानते हैं कुछ मुख्य वैश्विक खेल कार्यक्रमों के बारे में। जनवरी में कतर में एशियन कप (फुटबॉल) प्रस्तावित है। इसी माह ऑस्ट्रेलियन ओपन टेनिस मेलबर्न में होना है। क्रिकेट अंडर 19 का वर्ल्ड कप जनवरी-फरवरी में दक्षिण अफ्रीका में प्रस्तावित है। फरवरी में ही 6 देशों का रग्बी है। इसी माहवर्ल्ड टीम टेबल टेनिस चैंपियनशिप प्रस्तावित है। मार्च में टोक्यो मैराथन है। अप्रैल में कई देशों में चैंपियनशिप प्रस्तावित हैं। इनमें गोल्फ, स्नूकर एवं लंदन मैराथन शामिल हैं। मई में फुटबॉल की यूरोपियन लीग प्रस्तावित है। जून में जर्मनी में फुटबॉल मैच हैं। इनके अलावा कई देशों में क्रिकेट टूर्नामेंट होने हैं। इनमें महिला विश्वकप भी शामिल है। 
फिल्मी जगत के लिए भी अनूठा वर्ष
साल 2024, टीवी सीरियल्स एवं बॉलीवुड एवं हॉलीवुड में नयी फिल्मों के अलावा भारत की प्रादेशिक फिल्मों के लिए भी खास रहेगा। जनवरी में ही अमिताभ बच्चन, दीपिका पादुकोण, प्रभास, दिशा पाटनी अभिनीत ‘प्रोजेक्ट के’ फिल्म रिलीज होने की संभावना है। इसी माह फिल्म फाइटर भी आ सकती है। इसमें भी दीपिका पादुकोण हैं। साथ में ऋतिक रोशन और अनिल कपूर का अभिनय है। इसी तरह फरवरी में आमिर खान की मोगुल रिलीज हो सकती है। इसी साल आने वाली अन्य फिल्मों में हेरा-फेरी 3, बड़े मियां छोटे मियां, सिंघम अगेन, वॉर 2, भूल भुलैया 3, मैं अटल हूं, योद्धा, कल्कि आदि हैं। इनके अलावा हॉलीवुड भी कुछ धमाकेदार मूवीज लेकर आने वाला है। इनमें कैप्टन अमेरिका: न्यू वर्ल्ड आर्डर, डेडपूल 3, आदि हैं।
हकीकत में निपटना होगा आभासी दुनिया से
नये साल में आभासी दुनिया और हावी होने जा रही है। हावी इस तरह से भी कि असली और नकली का फर्क ही समझ में नहीं आए। हालांकि सरकार ने डीपफेक जैसे मुद्दों पर कुछ कानूनी प्रक्रियाएं शामिल की हैं, लेकिन खतरा अभी टला नहीं है। इसके साथ ही हम सबको सावधान भी रहना होगा। चैट जीपीटी, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस जैसी बड़ी चुनौतियां हैं। अहम मुद्दा यह है कि तकनीक का विकास चुनींदा बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हाथों में हुआ। सरकारों के पास सीमित संसाधन और क्षमताएं हैं। तकनीकी चुनौतियों के साथ ही इस्राइल-हमास युद्ध और रूस-यूक्रेन युद्ध का मामला भी बहुत गंभीर है। ये युद्ध नियंत्रित नहीं हुए तो इसका असर और घातक प्रभावकारी हो सकता है। इसी तरह स्वास्थ्य का मामला है। कोविड का नया रूप फैल रहा है। हालांकि उसे ज्यादा खतरनाक नहीं माना जा रहा है, लेकिन बचाव के उपायों के प्रति सतर्कता बहुत जरूरी है। नयी शिक्षा नीति के अनेक किंतु-परंतु सामने आ रहे हैं। बच्चों को उसके लिए तैयार करना और अध्यापकों की विशेष ट्रेनिंग भी जोरशोर से चलानी होगी। साइबर क्राइम पर लगाम नहीं लग पा रही है। अनेक जागरूकता संदेशों के बावजूद लोग धोखाधड़ी के शिकार हो रहे हैं।
चुनौतियों की भले ही भरमार लग  रही हो, लेकिन उम्मीदें और संभावनाएं भी कम नहीं हैं। जिम्मेदारी को समझते हुए, सजग रहते हुए नये साल में संभल-संभल कर पग धरेंगे तो निश्चित रूप से नये फलक पर विचरण के लिए कल्पनाओं को पंख लगेंगे और हर नयी डगर हकीकत के धरातल पर सकुशल आगे बढ़ेगी। अपने हिस्से की जिम्मेदारी को समझते हुए हर कोई कर्तव्य और अधिकार का संतुलन बनाए रखे तो यह परिवार, समाज के साथ देशहित में होगा।
साभार : दैनिक ट्रिब्यून

Friday, December 15, 2023

सांची बात, विस्तारित सौरभ और शादी के दौरान मुलाकात

 केवल तिवारी

सांची कहूं, सौरभ सा फैल गया अपनापन 

कुणाल की चमक, हर तरफ गौरवमयी धमक 

पूरन हुआ काज खुशियों से भरा शीला का दामन 

गंगा सा अवतरण शिव के द्वार, फैली पूरी चमक। 

बारात प्रस्थान की तैयारी


रविवार 10 दिसंबर, 2023 की शाम एक फिल्मी गीत रह-रहकर मेरे मन मस्तिष्क में चल रहा था। गीत के बोल हैं ‘ऐ वक्त रुक जा, थम जा ठहर जा, वापस जरा लौट पीछे’  लेकिन न तो वक्त थमता है और न ही ठहरता है, पीछे तो कतई नहीं लौटता है। इसलिए आपाधापी हुई और अनेक लोगों से मिल-मिलाकर लखनऊ से चंडीगढ़ को लौट आए। दरअसल, प्रिय भानजे सौरभ के विवाहोत्सव के बाद 10 तारीख को रिसेस्पशन चल रहा था। अनेक पुराने-नये जानकारों से मुलाकातों का सिलसिला चल रहा था। साथ ही कुछ आपाधापी भी थी। कुछ देर पहले ही महिला संगीत के दौरान नाच-गाने का कार्यक्रम चल रहा था। उससे कुछ देर पहले, अरे हां कुछ ही देर तो था हम लोग बारात से वापस लौटे थे। लंबे सफर के बाद। मुझे पल-पल की जानकारी देने में आनंद आ रहा था। देहरादून से लखनऊ को चले तो बेशक थकान हावी थी, लेकिन बस में मौजूद अनेक परिजन के साथ बातचीत के आनंद में यह थकान हावी नहीं हो पाई। अपनेपन में कहां कुछ लगती है थकान। इससे कुछ दिन पहले चंडीगढ़ से लखनऊ पहुंचने की व्याकुलता थी। बुधवार 6 दिसंबर को रात में ट्रेन में बैठे। छोटा बेटा धवल तीन दिन पहले से ही घंटे गिनने लगा था। उसके अनेक सवाल कब चलेंगे, कब पहुंचेंगे। ट्रेन में बैठने के बाद भी सवालों की बौछार। इसी दौरान परिजन के फोन आने भी शुरू। बैठ गए। कब तक पहुंचोगे। अगली सुबह यानी 7 दिसंबर को हल्दी कार्यक्रम था। हम लोग ट्रेन में ही थे और फोन पर फोन आ रहे थे। अहसास हुआ कि एक-दो दिन पहले आ जाना चाहिए था। पत्नी से भी इसका जिक्र हुआ, लेकिन मजबूरियां भी तो ऐसी होती हैं कि फिर बाद में भी यह लगा कि एक-दो बाद का कार्यक्रम बनाना चाहिए था, लेकिन ऐसा कहां हो पाता है। खैर। जैसे ही करीब 11 बजे हम लोग पहुंचे, वहां हल्दी रस्म की तैयारी पूरी हो चुकी थी। शीला दीदी, पूरन जीजाजी से मुलाकात हुई। दूल्हे राजा यानी सौरभ जिसे मैं प्यार से शेख साहब कहता हूं भी गर्मजोशी से मिले। फिर भानजे कुणाल, गौरव के साथ ही दीदियां, पीएसी वाले जीजाजी आदि से मुलाकात हुई। प्रेमा दीदी पहुंची थी। मिलते ही रोने लगी। मैं भी भावुक हो गया। मिश्राजी जीजाजी की याद आई। देहरादून में मित्र राजेश ने भी उन्हें तब बहुत मिस किया जब वह भानजी रेनू और भानजे मनोज से मिल रहा था। चलिए अब इस प्यारी याद की अन्य बातों को साझा करूं। 

हल्दी कार्यक्रम के दौरान मैं ‘विजी विदआउट वर्क’ और बारात की मस्ती 

हल्दी में दोनों भाई, ताई और मम्मी।

बेशक मैं बार-बार कह रहा था कि मेरे लायक काम बताना, लेकिन वहां ऐसा कुछ नहीं था, फिर भी मैं व्यस्त जैसा चल रहा था। कभी किसी मेहमान को लाने मेट्रो स्टेशन की तरफ जाना और कभी दुकान से छोटा-मोटा सामान लाने। इसी दौरान कुछ बातों की भी व्यस्तता। सामने के एक कमरे में भानजे पंकज, उसकी बेटी अग्रणी और भानजी लता के पति पंतजी के साथ बातचीत। पंतजी से धवल की विशेष वार्तालाप। मजेदार। जीजा-साले की बात। साथ ही जीजाजी के जीजाजी से उनके साले के साले से बातचीत। कब दिन निकल गया और शाम को बारात चलने का वक्त हो गया पता ही नहीं चला। नाचते-कूदते हम लोग बस में सवार होकर चल पड़े सौरभ की दुल्हनिया को लाने के लिए। आधे सफर तक गीत-संगीत और नाच-गाना चला। फिर कुछ देर ड्राइवर साहब के साथ बैठ गया। सुबह पहुंचे देहरादून के होटल में। बेहतरीन व्यवस्था थी। नाश्ता-पानी और लंच के बाद कुछ देर के लिए मित्र राजेश डोबरियाल से मिलने गया। वह हमें खुद ही लेने आया। वहां अंकल जी से मुलाकात हुई। वर्षा मिलीं, बच्चे मिले। पुरानी वीडियोज देखीं। दो घंटा कब बीता पता ही नही चला। यहां भी बिजी विदआउट वर्क रहा। कभी दिल्ली से आने वाले अपने परिवारीजनों के लिए कमरा बुक रखना, कभी पुराने मित्रों से मिलना, कभी किसी को लोकेशन भेजना। यहां नितिन की मम्मी बीना, भतीजे हरीश, प्रकाश सपत्नीक पहुंचे। भतीजी नीरा, उसके पति दर्शनजी, भतीजी प्रेमा और उसके पति गौरवजी से मुलाकात हुई। बड़े भाई समान वरिष्ठ पत्रकार कलूड़ा अभिनव जी से काफी बातें हुईं। इससे पहले हल्द्वानी काठगोदाम से आए बच्चों के मामा नंदाबल्लभ जी, शेखर जोशी जी और मौसाजी सुरेश पांडे जी और प्रिय सिद्धांत जोशी उर्फ सिद्धू से मुलाकात और बात हुई। जाना तो सिद्धू के कमरे पर भी था, लेकिन आज तो समय की रफ्तार कुछ ज्यादा ही थी। कहने-लिखने की कई और बातें हैं, लेकिन इस ब्लॉग पर तो फिल्मी सीन की तरह चलना है इसलिए संक्षेप में ही सही। 

शादी की रात, मुलाकात और बात 




शादी की रात हम सब बाराती प्रसन्नचित्त रहे। कभी कोई मिला और कभी कोई। बीच-बीच में जीजाजी के निर्देश। फिर कभी साथी बाराती की बात। इसी दौरान भानजे मंटू की शादी की सालगिरह की बात आई। छोटे भाई सोनू की पत्नी भावना एक केक सा कुछ खाने का आइटम ले आई और हम लोगों ने तालियां बजाकर उन्हें मुबारकबाद दी। इससे पहले धूलिअर्घ्य के दौरान सौरभ के जूतों को मैंने और भतीजे प्रकाश ने अपनी कस्टडी में रख लिए। पूजा के बाद मैं सौरभ को मोजे और जूते पहनाने लगा तो उसने तुरंत अपने हाथ में लेकर कहा, मामा ऐसे न करो। मैंने कहा अरे आज तुम दूल्हे हो, मुझे पहनाने दो। वह हंस पड़ा और फिर कार्यक्रम आगे चलने लगे। इधर खान-पान गपशप और उधर जयमाल। फिर शुरू हुई शादी। इस पूरे प्रकरण में प्रकाश का रातभर जगना और साथ में मेरे छोटे बेटे धवल की उत्सुकता देखने लायक थी। वह हर रस्म को बहुत गंभीरता से देख रहा था साथ ही इस बात से खुश था कि आज उसके हाथ में आई फोन है। असल में सौरभ ने उसे अपना फोन पकड़ा रखा था, उसी से वह फोटो भी ले रहा था। इसी दौरान सांची के मम्मी पापा से भी कुछ हंसी मजाक हुई। मां तो मां होती है। कुछ रस्म ओ रिवाज के दौरान उनके आंसू छलक आए। इसी दौरान कुछ अन्य महिलाओं की आंखें भी नम हो गईं। यहां प्रसंगवश बता दूं कि इस दौरान गीत-संगीत का मोर्चा जय प्रकाश की पत्नी भावना ने संभाले रखा। साथ दिया योगिता, भावना आदि ने। शादी के दौरान ही पता चला कि हमारे परिवार में भावना नाम के अनेक बेटी बहुएं हैं।

वापसी की रोचकता और लंबा सफर 

अगले दिन बारात वापसी में हमारे हिसाब से तय समय से कुछ वक्त ज्यादा लग गया। सब लोग थके थे। बस में बैठकर मैंने गणेश वंदना और राम वंदना लगायी। फिर कुणाल के दोस्त से स्पीकर भी लेकर आया। इस दौरान देखा कि लोग थके हुए लग रहे हैं। कुछ लोग रिसेप्शन के लिए एनर्जी बचाने में लगे हैं। धवल तो सो गया। कुक्कू से बात हुई। साथ ही भानजी बीनू के पति सचिन से अनेक मुद्दों पर बात होती रही। किशोर, कैलाश, मुन्ना आदि से भी कुछ बातें होती रहीं। बीच-बीच में लखनऊ दीदी को अपडेट दे रहा था। रास्ते में एकाध जगह लंबा विश्राम होने से हम लोग रात करीब एक बजे घर पहुंचे। इस पूरे सफर में जीजाजी की सक्रियता और आगे और पीछे भी सभी काम को स्वयं हैंडल करने का उनका जोश और जज्बा अनुकरणीय रहा। उन्होंने हर काम को सलीके से खुद ही करने की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।  

और हमारा फटाफट चले आना 



भाई साहब के साथ गुफ्तगू

रिसेप्शन वाले दिन सुबह ही तेलीबाग से भाई साहब भुवन चंद्र तिवारी भी पहुंच गये। चूंकि प्रिय भतीजी कन्नू को कुछ शारीरिक दिक्कत आई थी, वह अस्वस्थ थी, इसलिए भाभीजी और कन्नू नहीं आ पाए। भाई साहब भी नोएडा में ही थे, लेकिन रिसेप्शन वाले दिन के लिए लखनऊ आ गए। अगले ही दिन दिल्ली के लिए उनकी ट्रेन थी। दिन में अनेक बार उनसे कई बातें हुईं। शाम को भी उनके जरिये गांव के कई लोगों से मुलाकात हुई। बातों-मुलाकातों में कब शाम हो गयी पता ही नहीं चला। जीजाजी के बड़े भाई यानी जयप्रकाश के पिताजी, मंटू के पिताजी और मंजिलबाबू से भी कई बातें हुईं। लखनऊ पहुंचते ही रिश्ते में भानजा लगने वाले नवीन पांडे उर्फ नंदन ऊर्फ राजस्थान वाले मिले। उनकी पत्नी गीता ने शुरू से ही फोटो, वीडियो साझा कर जैसे हमें जोड़े रखा। शाम को बेटे दीपक से अच्छी मुलाकात हुई। इससे पहले भुवन जीजाजी और जय प्रकाश के साथ तो बारात में आने-जाने के दौरान भी अच्छा साथ रहा। बातें बहुत हैं, लेकिन फिल्मी स्टाइल में ही सब सिमट गया। जैसा कि पहले ही कह चुका हूं, सपना सरीखा सा लगा। वक्त चलता रहा और आखिरकार चलते वक्त में बहते हुए अनेक मीठी-मीठी यादों को सहेजकर आखिरकार हम चंडीगढ़ पहुंच गए और अभी तक शादी की ही बातें चल रही हैं। सौरभ-सांची सदा खुश रहें।  

विशेष : पूरा ब्लॉग स्मृति आधारित है। इसलिए अनेक लोगों और अवसरों का जिक्र रह गया। अनेक तस्वीरें भी साझा नहीं कर पाया। जब भी लखनऊ जाएं तो दीदी जीजाजी के यहां एलबम देखें और वीडियो देखें। सभी को धन्यवाद। आभार।